वैसे तो भारतीय वायु सेना के इस होनहार पायलट को 2000 से भी ज़्यादा घंटों की उड़ान का शानदार अनुभव पहले से था, वह दुनिया के कुछ बेहतरीन लड़ाकू विमान भी उड़ा चुका था, अनगिनत बार विमान के कॉकपिट में बैठे हुए उसने आकाश की असीम ऊँचाईयों को छुआ था और ना जाने कितनी बार वह बादलों से होकर गुज़रा था, पर इस बार उसे बादलों से भी आगे जाना था, इस बार उसकी नई उड़ान उसे नीले आसमान के पार ले जा रही थी। इस बार उसका नया मिशन हर मायने में अलग था — उसे धरती की सतह से इतना ऊपर जाना था जब गुरुत्वाकर्षण बेअसर हो जाता है और मनुष्य का शरीर जैसे शून्य में तैरने लगता है, इस बार वह अंतरिक्ष से पृथ्वी को निहारने का विलक्षण अनुभव लेने जा रहा था। ग्रुप कैप्टेन शुभांशु शुक्ला की यह यात्रा अभूतपूर्व थी, क्योंकि यह भारत के इतिहास में अंकित होने जा रही थी।
शुभांशु के स्पेस मिशन की शुरुआत 25 जून को हुई जब स्पेस एक्स के ड्रैगन स्पेसक्राफ्ट ने अमेरिका के फ्लोरिडा में नासा के कैनेडी स्पेस सेंटर से इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन के लिए उड़ान आरंभ की। यह उड़ान, जिसे Ax-4 नाम दिया गया, दरअसल एक व्यावसायिक उड़ान थी जिसे अमेरिका के ह्यूस्टन स्थित एक प्राइवेट फर्म एक्सिऑम स्पेस द्वारा ऑपरेट किया गया। 18 दिवसीय Ax-4 मिशन में अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा, भारतीय स्पेस एजेंसी इसरो, यूरोपियन स्पेस एजेंसी, और स्पेस एक्स का संयुक्त सहयोग रहा है।
पृथ्वी की निचली कक्षा में परिक्रमा कर रही प्रयोगशाला इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन की ओर जा रहे ड्रैगन स्पेसक्राफ्ट में सवार चार लोगों के दल का नेतृत्व कर रही थीं नासा की वरिष्ठ एस्ट्रोनॉट पेग्गी व्हिटसन, मिशन पायलट थे ग्रुप कैप्टेन शुभांशु शुक्ला, अन्य दो सदस्य पोलैंड व हंगरी से थे। उन्हें आईएसएस तक पहुँचने में कुल 28 घंटे लगे। ड्रैगन को वेस्टिब्यूल (एक गलियारे जैसी संरचना) के माध्यम से आईएसए से जोड़ दिया गया, हैच खोले गए, और आईएसएस में पहले से मौजूद सात लोगों ने Ax-4 मिशन के सदस्यों का स्वागत किया। दो हफ़्तों से भी ज़्यादा समय तक चलने वाले इस मिशन के दौरान शुभांशु ने आईएसएस में विभिन्न वैज्ञानिक प्रयोगों को अंजाम दिया। आईएसएस के प्रसिद्ध क्यूपोला मॉड्यूल से धरती का अद्भुत नज़ारा देखते शुभांशु की तस्वीर को करोड़ों भारतवासियों ने समाचार पत्रों में, टीवी / इंटरनेट पर देखा। मिशन का अंतिम चरण ड्रैगन के आईएसएस से अलग होने के साथ शुरू हुआ। स्पेस स्टेशन से अनडॉक होने के कुल 22 घंटे बाद इसने कैलिफ़ोर्निया के सैन डिएगो के तट के नज़दीक प्रशांत महासागर में लैंड किया।
शुभांशु की इस असाधारण यात्रा से लगभग चार दशक पहले, शुभांशु के जन्म से भी पहले, भारतीय वायु सेना का ही एक पायलट अंतरिक्ष में प्रथम भारतीय की उपस्थिति दर्ज करा चुका था — विंग कमांडर राकेश शर्मा पहले भारतीय अंतरिक्षयात्री थे, जो 1984 में रूसी सोयुज़ टी-11 यान से सोवियत यूनियन के स्पेस स्टेशन सेल्युत-7 में पहुँचे और वहाँ करीब आठ दिन रहे। शुभांशु राकेश शर्मा के बाद अंतरिक्ष की यात्रा करने वाले दूसरे भारतीय हैं, लेकिन वे इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन में कदम रखने वाले पहले भारतीय हैं। भले ही शुभांशु की यह यात्रा अंतरिक्ष में किसी भारतीय की प्रथम यात्रा नहीं है, लेकिन Ax-4 मिशन में शुभांशु ने जो कौशल, प्रशिक्षण और अनुभव हासिल किया है वह 2027 में भारत के अपने ह्यूमन स्पेसफ्लाइट प्रोग्राम ‘गगनयान’ के लिए बेहद अहम है, जिसके अंतर्गत पहली बार स्वदेश निर्मित अंतरिक्षयान में भारतीय अंतरिक्षयात्रियों के दल को पृथ्वी की निचली कक्षा में भेजा जाना है।
“विमान उड़ाने की नैसर्गिक योग्यता उसमें शुरुआत से ही थी।” यह कहना है शुभांशु के पहले फ्लाइंग इंस्ट्रक्टर का, जिन्होंने राष्ट्रीय रक्षा अकादमी में उन्हें उड़ान का प्रथम प्रशिक्षण दिया। वायु सेना अकादमी से प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद उन्हें 2006 में भारतीय वायु सेना में एक फाइटर पायलट के तौर पर कमीशन मिला। उन्होंने मिग-21, मिग-29, सुखोई-30MKI, जैगुआर, और हॉक जैसे बेहद उन्नत लड़ाकू विमानों को उड़ाया, टेस्ट पायलट और कॉम्बैट लीडर जैसी चुनौतीपूर्ण भूमिकाओं में रहकर सफलतापूर्वक कार्य किया। 2019 में भारत के महत्वाकांक्षी गगनयान मिशन के लिए वायु सेना के चार पायलटों का चयन किया गया, जिनमें से एक शुभांशु भी हैं। 2024 में इसरो ने शुभांशु को Ax-4 मिशन के लिए मिशन पायलट बनाने की घोषणा की।
“धरती को बाहर से देखने के बाद, पहला विचार जो मेरे मन में आया वह था, धरती पूरी तरह एक दिखती है; बाहर से इसमें कोई सीमा नहीं दिखती। ऐसा लगता है जैसे किसी सीमा का कोई अस्तित्व ही नहीं है, किसी राज्य का अस्तित्व नहीं है, किसी देश का अस्तित्व नहीं है। हम सब उसी एक मानवता के भाग हैं, और हमारा एक घर पृथ्वी है, और हम सभी उसमें हैं।” प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ अपनी बातचीत के इस अंश में शुभांशु ने अनजाने में ही संस्कृत की प्रसिद्ध उक्ति ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ का एक नया अर्थ अपने सरल विचारों में दे दिया।
कभी 41 साल पहले विंग कमांडर राकेश शर्मा ने अंतरिक्ष से भारत को “सारे जहाँ से अच्छा” बताया था, उन्हीं का ज़िक्र करते हुए शुभांशु ने कहा, “आज भी हम जानना चाहते हैं कि यह अंतरिक्ष से कैसा दिखता है। मैं आपको बताता हूँ — अंतरिक्ष से आज का भारत महत्वाकांक्षी दिखता है, यह निडर दिखता है, यह आत्मविश्वास से पूर्ण दिखता है, यह गर्व से भरा दिखता है। और इसीलिए, एक बार फिर मैं कह सकता हूँ कि आज का भारत अभी भी बाकी दुनिया से बेहतर दिखता है।” ग्रुप कैप्टेन शुभांशु शुक्ला के शब्द दशकों तक अनगिनत सपनों को उड़ान देते रहेंगे।
शुभ्र आत्रेय,
कॉन्टेंट राइटर,
आई० टी० डिपार्टमेंट

