राष्ट्र को झकझोर देने वाला क्षण
चीड़ और देवदार के घने जंगलों के बीच, पीर पंजाल के ऊँचे बर्फ से ढके पहाड़ों से घिरी बैसरन घाटी में यह एक और ख़ुशनुमा दोपहर थी। समुद्र तल से साढ़े सात – आठ हज़ार फ़ीट की ऊँचाई पर और कश्मीर के प्रसिद्ध पर्यटन स्थल पहलगाम से महज़ कुछ किलोमीटर की दूरी पर ‘मिनी स्विट्ज़रलैंड’ के नाम से मशहूर इस ख़ूबसूरत वादी के हरे-भरे घास के मैदानों में देश के विभिन्न प्रांतों से आये सैलानी खुले आसमान के नीचे गुनगुनी धूप में टहलते हुए प्रकृति के दिलकश नज़ारों का लुत्फ़ उठा रहे थे। अचानक कुछ ऐसा हुआ कि फ़िज़ा पूरी तरह बदल गयी। करीब ढाई – पौने तीन बजे ऑटोमैटिक राइफल से गोलियों के कई राउंड चलने और लोगों के चीखने – पुकारने की आवाज़ों से घाटी गूंजने लगी। यादगार पलों को परिवार के साथ बिताने आए सैलानियों के सामने उनकी ज़िंदगी का शायद सबसे ख़ौफ़नाक मंज़र था — निहत्थे बेकसूर पर्यटकों को उन्हीं के परिवारजनों के सामने मौत के घाट उतारते भारी हथियारों से लैस सेना की वर्दी पहने कुछ दहशतगर्द, जान बचाकर बदहवास भागते लोग, और जीवनसाथी के लहूलुहान शव के पास बिलखती विलाप करती महिलाएं।
22 अप्रैल के दिन पहलगाम में हुआ आतंकी हमला अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद जम्मू-कश्मीर में हुआ सबसे भीषण हमला है। जिस तरह से आतंकियों ने 28 निर्दोष लोगों की नृशंस तरीके से हत्या की है, उसे लेकर देश भर में उबाल है, पूरे भारत में आक्रोश की एक लहर है, हर कोई गुस्से से भरा है और अपना रोष खुलकर व्यक्त कर रहा है। कहने की ज़रूरत नहीं, यह आतंकी हमला पाकिस्तान के इशारे पर हुआ है। हमला करने वाले लोग उन्हीं आतंकवादी संगठनों से जुड़े हैं जिनके ठिकाने पाकिस्तान में मौजूद हैं, और बीते समय में इन्हीं ठिकानों पर प्रशिक्षण पाये अनगिनत आतंकवादियों ने ना जाने कितनी आतंकी वारदातों को भारत में अंजाम दिया है। आतंकियों की तलाश जारी है। जांच से पता चला है कि एक आतंकी तो पाकिस्तानी स्पेशल फोर्सेज़ का पूर्व पैरा कमांडो है जिसे पाकिस्तान में स्थित कुख्यात आतंकवादी संगठन लश्करे-ए-तैयबा ने कश्मीर में ख़ास मिशन के लिए भेजा है।
“यह हमला सिर्फ निहत्थे पर्यटकों पर नहीं हुआ है, देश के दुश्मनों ने भारत की आत्मा पर हमला करने का दुस्साहस किया है। मैं बहुत स्पष्ट शब्दों में कहना चाहता हूँ, जिन्होंने यह हमला किया है, उन आतंकियों को और हमले की साज़िश रचने वालों को उनकी कल्पना से भी बड़ी सज़ा मिलेगी; सज़ा मिलकर रहेगी। अब आतंकियों की बची-खुची ज़मीन को भी मिट्टी में मिलाने का समय आ गया है।” पहलगाम आतंकी घटना के बाद प्रधानमंत्री मोदी के इस संदेश से अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि वे इस बार पाकिस्तान के दुस्साहस का बेहद करारा जवाब देने का मन बना चुके हैं। निश्चित रूप से इस बार भारत की सशस्त्र सेनाएँ जो भी कार्यवाही करने जा रही हैं, वह 2016 में की गयी सर्जिकल स्ट्राइक और 2019 में की गयी बालाकोट एयर स्ट्राइक से कई गुना ज़्यादा घातक व प्रभावी होगी।
दशकों से सीमा पार आतंकवाद झेलता आ रहा भारत इस बार भरपूर वार करने को तैयार है। इस बार स्थिति कितनी गंभीर है, इस बात का साफ़ अंदाज़ा लगाया जा सकता है भारत के सिंधु जल संधि को स्थगित कर देने के निर्णय से। 1960 में भारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु और उसकी सहायक नदियों के पानी के बँटवारे को लेकर यह संधि हुई थी। पाकिस्तान की 80 फ़ीसदी खेती भारत से आने वाले पानी पर निर्भर है। यह पहली बार है कि भारत ने इस समझौते से खुद को अलग कर लिया है। 2016 में हुए उरी आतंकवादी हमले के बाद, जैसा कि प्रधानमंत्री ने कहा था, “खून और पानी एक साथ नहीं बह सकते” — वर्षों पहले उनकी कही इस बात के मायने आज पाकिस्तान को समझ आ रहे होंगे। अब ख़ून बहाने की कीमत पड़ोसी मुल्क को प्यासा रहकर चुकानी पड़ेगी।
पाकिस्तान में मौजूद आतंकवादी संगठनों के ठिकाने और ट्रेनिंग कैंप दरअसल भारत में आतंकवाद के निर्यात के माध्यम हैं, समस्या की जड़ नहीं हैं। भारत में आतंकवाद की असल शुरूआत होती है रावलपिंडी से यानी पाकिस्तानी फ़ौज के मुख्यालय से। पाकिस्तान के फ़ौजी जनरलों ने दशकों से जम्मू-कश्मीर में आतंक को सुलगाए रखा है, और इसके लिए उन्होंने अलग-अलग आतंकवादी संगठनों को खड़ा किया, उन्हें वैचारिक समर्थन दिया, उन्हें हथियार, पैसा, ट्रेनिंग, और हर तरीके की मदद मुहैया कराई। इसका सीधा मतलब है कि अगर आप भारत में आतंकवाद को पनपने से रोकना चाहते हैं तो आपको पाकिस्तान की फ़ौज को एक तगड़ी चोट देनी होगी।
नक़्शे पर पीओके और गिलगित-बाल्टिस्तान हमें भारत के अभिन्न हिस्से के तौर पर दिखते हैं, जबकि वास्तव में ये भू-भाग पाकिस्तान के अधिकार में हैं। महाराजा हरिसिंह ने पूरे जम्मू-कश्मीर राज्य के भारत में विलय के लिए विलय-पत्र पर हस्ताक्षर किये थे। 1947 से जम्मू-कश्मीर के जिन भू-भागों पर हमारा नियंत्रण होना चाहिए था, उन पर पाकिस्तान का अवैध कब्ज़ा है। इन दिनों पाकिस्तान के अंदरूनी हालात बेहद नाज़ुक हैं। बलूचिस्तान से लेकर खैबर पख्तूनख्वा और सिंध, सब अलग-अलग कारणों से सुलग रहे हैं। पाकिस्तान क़र्ज़ में डूबा है और अर्थव्यवस्था संकट के दौर से गुज़र रही है। एक धक्का लगते ही पूरा मुल्क टूटने की कगार पर आ सकता है। यह समय भारत को पीओके वापिस लेने का एक अवसर दे रहा है। वर्तमान सरकार का तो संकल्प ही पीओके को वापिस लाने का है। हो सकता है, इस बार भारतीय सेना नया इतिहास रचने के साथ नयी सीमाएं भी बना दे।