‘‘वो आशना जो छोड़कर दुनिया चले गये जी चाहता है, उनसे कहीं मिलकर आए‘

‘‘वो आशना जो छोड़कर दुनिया चले गये जी चाहता है, उनसे कहीं मिलकर आए‘

ज़िन्दादिली, इन्सानियत नवाज़ी, हमदर्दी व खि़दमत के जज़्बे के साथ हम सभी की ज़िन्दगियों में रोशनी बिखेरने वाली हमारे विश्वविद्यालय की संस्थापिका संघमाता डा.मुक्ति भटनागर मैम की याद में लिखने के लिये अल्फ़ाज़ कम है। डा. मुक्ति भटनागर मैम ऐसी शख़्सियत रही, जो हर किसी को जिंदगी में सच्चाई व तरक्की का रास्ता दिखाया करती थी। बेशक आज वो हमारे बीच में नही है लेकिन उनकी यादें और उनके जरिये जो हमारी तरबियत की गई है इन सभी जज़्बातों के साथ वों हमारे दिलों में ज़िन्दा है। डा.मुक्ति भटनागर मैम का मिज़ाज बहुत न्रम और हमेशा लोगो को इज़्ज़त देने वाला रहा है।
एक वाक़्या ज़हन में आ गया जिसे आपके सामने पेश कर रहा हूं। जब 2016 में एक कार्यक्रम के दौरान मैम से मुलाकात हुई,जब में उर्दू दैनिक सभा प्रभात में बतौर सह सम्पादक काम कर रहा था। जिसमें मैम ने मुझे देखते ही कहा ‘अनम तुम उूर्द तो बहुत अच्छी बोलते हो। मैम ने फिर कहा कि हमारा जो उूर्द अखबार है ‘‘सबा प्रभात‘‘ ज़रा इसका मतलब बताओं। फिर मैने मैम को बताया कि सबा प्रभात का मतलब ‘सुबह की हवा‘ होता हैं। मैम ने कहा बिल्कुल सही, और मुस्कुराते हुए मुझे शाबाशी दी व मेरी पीठ थपथपाई‘। आखिर में, मैं यहीं कहना चाहूंगा कि आदरणीय संघमाता जी ने हमें जो संस्कार और सीख दी है हम सभी को उसी रास्ते पर हिम्मत, हौसलें व जज़्बे के साथ चलना चाहिए। संघमाता डा. मुक्ति भटनागर मैम को इसी कामना के साथ मेरी ये श्रद्धांजलि है कि उनके नज़रिये व उनके पैग़ाम को समाज के आखि़री इंसान तक पहुंचाकर सुभारती आंदोलन को मजबूती देनी चाहिए ताकि चमकते हुए स्वर्णिम भारत को सुभारती के रूप में स्थापित किया जा सकें। जय हिन्द।
अनम ख़ान शेरवानी
मीडिया एवं इवेंट मैनेजर
स्वामी विवेकानन्द सुभारती विश्वविद्यालय

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