मैं हूँ आईना….
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 किसी के घर दिवार पर लटका
  छोटा सा सामान हु मैं,
 हर घर रखी अलमीरा का
 आधा हिस्सेदार हु मैं
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 रामू काका की कुटिया हो या
 डॉक्टर साहब का मकान बड़ा
   मेरी सबके आगन में
      पुरी हिस्सेदारी है।
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 राहुल, असलम हो या डेविड
   हँ सबसे मेरी यारी है,
 सबको मै बस सच दिखलाता
 एकलौती मेरी जिम्मेदारी है।
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      खुद की तलाश में
    मुझको ढूँढा करते है सब
 चलते फिरते जब भी दिख जाता है
 आखों से गुफ्तगू करते है,
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      मै भी उम्मीदे पुरी करता
    नए लिबास का नूर दिखाता
 हस्ते को खुशी का एहसास दिलता
      रोते को आशु छलकता
   हं मै बस सच दिखलाता हुं।
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   लाख खासियत बस्ती मुझमें
    काला गोरा ,लम्बा बौना
 सबको मैं दिल से अपनाता हूं,
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   मेरे कद का छोटा होना
 घर की आमदानी तक दर्शता हूँ।
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 फरेब बाढ़ इस दुनिया में भी
 एक लौता सच्चा साथी हु मैं
 बड़े प्यार से रखते मुझको
 जो मै टूटा, तो वो टूटेंगे
 गर मैं संभला, तो वो निखरेंगे
    ऐसी मेरी यारी है
 सच ही सच बस बतलाता हूँ
 एक लौती मेरी जिम्मेदारी है।
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 नई कमीज हो या शादी का जोड़ा
 सब पहले मुझको दिखलाते हैं,
 पिया के लिए सजती दुल्हनिया
 के नयन पहले मुझसे टकराते हैं।
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 पीढ़ी दर पीढ़ी दर बढ़ती जाति
 लोग बदलते ,वक़्त बदला
 हालात भी एक ना रह पाते हैं,
 अटल अमर सा रहता हूं मैं
 लोग मुझे आया करते हैं।
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Written By -
Mr. Mandeep Yadav
B.P.T Batch - 2020,
Faculty of Physiotherapy & Allied Health Sciences

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